लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
इस देश में तलाक़ नहीं होता। तलाक़ होने की कोई वजह नहीं है। औरत-मर्द जब विवाह-बन्धन में आबद्ध होते हैं, तब एक लिखित या अलिखित शर्त होती है। वह है, पति कमायेगा, घर के लोगों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठायेगा और पत्नी, पति के आदेश-निदेशों का पालन करेगी, पति की सेज-संगिनी बनेगी, पति की घर-गृहस्थी सँभालेगी, पति के बच्चे पैदा करेगी और वही सन्तानों का लालन-पालन करेगी। यह समझौता होता है। यह समझौता या शर्त, औरत-मर्द के प्रणय या अप्रणय, जिस किसी विवाह में शामिल रहता है। एक जीते-जागते प्राणी को मर्द अपने ऐशो-आराम, भोग-विलास के लिए अपनी मुट्ठी में पा लेते हैं। औरत इन्सान तो होती है मगर उसमें अपनी बोध-बुद्धि की मनाही होती है; औरत के अपने किसी निजी जीवन की मनाही होती है। औरत को पति-सेवा और पति के सुख-भोग में अपने को विसर्जित करना होता है। इन्सान होने के बावजूद, जन्मसूत्र से प्राप्त स्वाधीनता और अधिकारों से औरत को वंचित रहना होता है। बिना पैसे के ऐसी सुविधाजनक दासी पाने का आराम पुरुष क्यों छोड़ें? इसलिए विवाह के बाद पुरुषों के द्वारा तलाक़ देने की कोई वजह नहीं होती। पत्नी के साथ हमबिस्तर होने का मन न करे, तब भी कोई असुविधा नहीं है, किसी और सेज-संगिनी की अनायास ही व्यवस्था कर सकता है, कोई उसे बाधा नहीं देता। पत्नी से विमुख हो कर, किसी अन्य औरत के प्रति आकर्षित होना, मर्द के आधुनिक होने की शर्त जैसा है। मर्द को तलाक़ देने की जरूरत नहीं पड़ती। एक दासी को छोड़कर, कोई और दासी के लिए बेहद आकुल-व्याकुल होना बेमतलब है। दासी तो दासी होती है। दासी में प्रभु-भक्ति या पुरुष-भक्ति हो, यही काफ़ी है। बार-बार दासी बदलने के बजाय, परानी दासी को, जिसने इस बीच घर-गृहस्थी का कामकाज अच्छी तरह समझ-बूझ लिया है, उसे ही रखना बेहतर है। इसलिए मर्दो को एक के बजाय, इसी तरह की किसी और को रखने का कोई अर्थ नज़र नहीं आता। मर्द निरर्थक कामों में दिलचस्पी नहीं लेते। बीवी से अगर मन ऊब जाये, उसकी देह के प्रति दिलचस्पी न रहे और अगर घर-गृहस्थी मज़े-से चल रही हो, तो घर में बीवी जैसे रह रही है, रहे, घर के बाहर भी ऐश से व्यभिचार का मज़ा उठा सकते हैं। मर्द क्या बेवकूफ हैं कि जहाँ इतनी सुविधाएँ मौजूद हों, वहाँ तलाक़ देने जैसी बेवकूफी करेंगे? लेकिन बीवी अपने शौहर का व्यभिचार क्यों क़बूल कर लेती है-सवाल यह है! जवाब मिलता है, क़बूल करने के अलावा उसके पास और कोई उपाय नहीं होता। किसी और मर्द के घर जाने पर, वह मर्द भी व्यभिचार नहीं करेगा, औरत को यह गारण्टी कौन देगा? किसी-किसी का कहना है कि व्यभिचार मर्दो के खून में बसा होता है। मेरी राय में, व्यभिचार मर्दो के खून में नहीं, पुरुषतन्त्र के रन्ध्र-रन्ध्र में समाया हुआ है।
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